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राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में रहने वाले बिश्नोई समाज और जाट समाज के बीच के संबंध का पूरा ऐतिहासिक व वर्तमान परिदृश्य
मारवाड़ में बिश्नोई समाज और जाट समाज – ऐतिहासिक संबंध
1. बिश्नोई समाज की उत्पत्ति
- बिश्नोई पंथ की स्थापना 1485 ई. में गुरु जांभोजी (जांभेश्वर भगवान) ने मारवाड़ के पीपासर (वर्तमान नागौर ज़िला) में की।
- जांभोजी स्वयं पंवार (पंवार राजपूत) वंश से थे, लेकिन उनके शिष्य अलग-अलग जातियों से आए, जिनमें जाट, राजपूत, सुनार, मेघवाल आदि शामिल थे।
- बिश्नोई धर्म का आधार 29 नियम हैं (इसी कारण नाम "बीस-नोई"), जिनमें से कई नियम पर्यावरण संरक्षण, जीव रक्षा और नशा त्याग पर केंद्रित हैं।
2. जाट समाज से गहरा जुड़ाव
- गुरु जांभोजी के शिष्यों में बड़ी संख्या जाट जाति से थी।
- राजस्थान के मारवाड़ में रामपुरिया, भदू, भंयाला, मुकाम आदि गाँवों में जाट मूल के बिश्नोई परिवार बस गए।
- शुरुआती दौर में बिश्नोई पंथ अपनाने वाले कई जाट गोत्र (जैसे — भदू, खींवसरिया, जाखड़, करमसरिया) पूरी तरह बिश्नोई धर्म में रच-बस गए।
- बिश्नोई पंथ में आने के बाद भी लोगों ने अपने जाट गोत्र नाम कायम रखे, जिससे पहचान बनी रही।
3. ऐतिहासिक सहयोग और संघर्ष
-
पर्यावरण संरक्षण में एकजुटता:
जाट किसानों और बिश्नोई धर्मावलंबियों ने आपसी सहयोग से खेजड़ी पेड़ों, नीलगाय, हिरण, गोडावण जैसे जीवों की रक्षा की। -
मारवाड़ राजवंश से टकराव:
18वीं–19वीं सदी में मारवाड़ रियासत के समय, कई बार कर वसूलने और जंगल काटने को लेकर बिश्नोई व जाट किसानों ने एक साथ प्रतिरोध किया। -
क़ीमत चुकाने वाली घटनाएँ:
- खेजड़ली बलिदान (1730 ई.) — अमृता देवी बिश्नोई और 363 बिश्नोई (जिनमें कुछ जाट पृष्ठभूमि के भी थे) ने जोधपुर महाराजा के सैनिकों द्वारा पेड़ काटने के विरोध में बलिदान दिया।
- इस घटना ने दोनों समाजों में "पेड़-पशु की रक्षा पहले" का भाव और मज़बूत किया।
4. आज का परिदृश्य (मारवाड़ क्षेत्र)
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आपसी रिश्तेदारी:
- मारवाड़ के नागौर, जोधपुर, बाड़मेर, पाली और जालोर ज़िलों में बिश्नोई और जाट समाज में वैवाहिक रिश्ते बहुत कम होते हैं, क्योंकि धर्म व रीति-रिवाज अलग हैं, लेकिन पारिवारिक व सामाजिक संबंध घनिष्ठ हैं।
- कई बिश्नोई परिवारों के पूर्वज जाट थे, इस कारण वंशावली में साझा इतिहास है।
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खेती-किसानी और पशुपालन:
- दोनों समाज पारंपरिक रूप से खेती और पशुपालन करते हैं।
- पानी की कमी और सूखा जैसे संकटों में दोनों मिलकर कुएँ-तालाब बनवाने और चारा आपूर्ति करने में मदद करते हैं।
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सामाजिक आंदोलन और राजनीति:
- पर्यावरण, किसान अधिकार और आरक्षण जैसे मुद्दों पर कई बार दोनों समाज साझा मोर्चा बनाते हैं।
- कुछ क्षेत्रों में राजनीतिक प्रतिस्पर्धा भी है, क्योंकि जाट और बिश्नोई नेताओं के अपने-अपने वोट बैंक हैं।
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पर्यावरण संरक्षण की विरासत:
- बिश्नोई समाज अब भी हिरण, नीलगाय, पक्षियों और पेड़ों की रक्षा में सबसे आगे है, और जाट समाज के कई गाँवों में भी यह संस्कृति अपनाई गई है।
5. सारांश
पहलू | बिश्नोई समाज | जाट समाज | आपसी संबंध |
---|---|---|---|
उत्पत्ति | गुरु जांभोजी द्वारा स्थापित पंथ | प्राचीन कृषक व योद्धा जाति | बिश्नोई धर्म में कई जाट गोत्र शामिल |
मुख्य पहचान | पर्यावरण, जीव रक्षा, 29 नियम | खेती, पशुपालन, योद्धा परंपरा | साझा ग्रामीण व कृषि जीवन |
संघर्ष इतिहास | खेजड़ली बलिदान, राजदरबार से टकराव | कर वसूली, भूमि अधिकार के लिए संघर्ष | कई आंदोलनों में साथ |
आज की स्थिति | धार्मिक रूप से अलग, पर सांस्कृतिक जुड़ाव | जातीय पहचान मज़बूत | सामाजिक व राजनीतिक मेल-जोल |
1. मारवाड़ में जाट मूल बिश्नोई गोत्रों की सूची
(ये वे जाट गोत्र हैं, जिनके लोग गुरु जांभोजी के समय या बाद में बिश्नोई धर्म में दीक्षित हुए)
क्रम | गोत्र (Gotra) | मूल पहचान | वर्तमान मुख्य क्षेत्र |
---|---|---|---|
1 | भदू (Bhadhu) | जाट | नागौर, जोधपुर, बाड़मेर |
2 | जाखड़ (Jakhar) | जाट | पाली, जोधपुर |
3 | खींवसरिया (Kheevsariya) | जाट | नागौर |
4 | करमसरिया (Karamsariya) | जाट | जोधपुर, नागौर |
5 | काकड़ा (Kakra) | जाट | बाड़मेर |
6 | बुडिया (Budia) | जाट | पाली |
7 | मोर (Mor) | जाट | जोधपुर |
8 | भाकर (Bhakar) | जाट | नागौर |
9 | हाकड़ा (Hakra) | जाट | बाड़मेर |
10 | चौहान (Chouhan) | जाट | पाली, नागौर |
11 | सामरिया (Samariya) | जाट | नागौर |
12 | लखेरा (Lakhera) | जाट | जोधपुर |
नोट:
- कुछ गोत्र अब दोनों में हैं — यानी बिश्नोई और जाट समाज दोनों में ही लोग मिलते हैं।
- नाम वही हैं, पर धर्म व रीति-रिवाज अलग हैं।
2. आज की राजनीतिक-सामाजिक स्थिति का सारांश नक्शा
(A) भौगोलिक प्रभाव क्षेत्र
-
नागौर ज़िला:
- बिश्नोई बहुल गाँव — मुकाम, पीपासर, खींवसर
- जाट बहुल गाँव — रोल, मकराना, डीडवाना
- यहाँ दोनों समाज का राजनीतिक गठजोड़ कई चुनावों में निर्णायक होता है।
-
जोधपुर ज़िला:
- लूणी, ओसियां और बाप तहसील में दोनों समाज का दबदबा।
- हिरण संरक्षण में बिश्नोई आगे, खेती-किसानी में जाट प्रमुख।
-
पाली और बाड़मेर:
- जाटों की संख्या अधिक, लेकिन बिश्नोई भी प्रभावशाली।
- यहाँ जल संकट के समाधान में दोनों समाज मिलकर तालाब-कुएँ बनवाते हैं।
(B) सामाजिक रिश्ते
- धार्मिक तौर पर अलग पहचान, लेकिन
- सुख-दुख में साझेदारी
- एक-दूसरे के आयोजनों में भागीदारी
- प्राकृतिक आपदा में आपसी सहयोग
- विवाह प्रथा —
- आपस में बहुत कम, लगभग न के बराबर विवाह होते हैं।
- गोत्र समानता और धर्म अलग होने के कारण सामाजिक मर्यादा निभाई जाती है।
(C) राजनीति और आंदोलन
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राजनीतिक गठजोड़:
- किसान आंदोलन, आरक्षण और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों पर एक साथ खड़े होते हैं।
- विधानसभा चुनाव में कई बार एक समाज का उम्मीदवार दूसरे समाज के समर्थन से जीतता है।
-
पर्यावरण व पशु संरक्षण:
- बिश्नोई समाज हिरण, मोर और गोडावण की रक्षा में सख्त नियम मानता है।
- जाट समाज के कुछ गाँवों में भी यह परंपरा अपनाई गई है।
3. नक्शा रूपरेखा (टेक्स्ट-बेस्ड)
[ नागौर ]
↑ बिश्नोई केंद्र – मुकाम, पीपासर
↑ जाट केंद्र – रोल, मकराना
[ जोधपुर ]
↑ लूणी – दोनों समाज
↑ ओसियां – बिश्नोई
↑ बाप – जाट + बिश्नोई मिश्रण
[ पाली ]
↑ खेती में जाट, पर्यावरण में बिश्नोई सक्रिय
[ बाड़मेर ]
↑ जल संकट में सहयोग, काकड़ा/हाकड़ा गोत्र प्रभावशाली
रंगीन विजुअल नक्शा और वंशावली डायग्राम
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