राजस्थान में वर्तमान में भाजपा (भजनलाल शर्मा मंत्रिमंडल) की सरकार पर विभिन्न प्रकार की तीखी आलोचनाएं हो रही हैं। इन आलोचनाओं का आधार मुख्य रूप से वादे-खिलाफी, कानून–व्यवस्था, शिक्षा–बुनियादी ढाँचा, भ्रष्टाचार, और समुदायिक असंतुलन जैसे गंभीर विषय हैं।
⚡ 1. बिजली और पानी की कमी – वादे बनाम हकीकत
भाजपा सरकार आने से बिजली व पानी की समस्या दूर होने का वादा किया गया – लेकिन हाल के रिपोर्ट्स इस वादे से इतर हैं:
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का आरोप है कि गर्मी के दौरान राज्य में बिजली कटौती सामान्य होती जा रही है, जबकि सरकार इसे “शेड्यूल्ड रख-रखाव” बताकर विवाद टाल रही है ।
मोबाइल और किसानों में भी पानी का संकट गहरा है – हाल ही की खबरों में कृषि भू-भाग से संबंधित जलस्रोतों का नुकसान उठाया गया है ।
इसका मतलब है कि “बिजली-पानी की गारंटी” वादे के साथ आई सरकार को इन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, जो वादों और वास्तविकता में फर्क दिखाते हैं।
🧑🏫 2. शिक्षा तथा बुनियादी ढाँचे में गड़बड़ी
शिक्षा क्षेत्र में भी व्यवस्थागत विफलता देखने को मिल रही है:
झुंझुनूं के एक सरकारी स्कूल में केवल एक छात्र के लिए छह शिक्षकों का अनावश्यक तैनाती ढाई करोड़ रुपये सालाना खर्च में परिवर्तित हो रही है ।
शिक्षकों की कमी बनी हुई है, जिससे विद्यार्थियों के प्रदर्शन और भविष्य पर असर पड़ा है ।
कोचिंग केंद्रों के संबंधित अधिनियम (Rajasthan Coaching Centres Act) लाया गया, मगर छात्रों पर प्रेशर और मानसिक स्वास्थ्य समस्या को दूर करने की दिशा में अभी कार्यवाही का इंतजार है ।
शिक्षा प्रणाली के आधार संख्या की गड़बड़ी और हेतू-विरोधी बुनियादी ढाँचे ने सरकारी स्कूलों की विश्वसनीयता पर प्रश्न खड़े कर दिए हैं।
🔒 3. कानून–व्यवस्था में असफलता एवं अपराध की वृद्धि
अपराध नियंत्रण में विफलता भाजपा सरकार के सार्वजनिक छवि को क्षति पहुँचा रही है:
नाबालिगों के साथ हुए दुष्कर्म की घटनाओं में वृद्धि हुई है – इनसे पता चलता है कि पुलिस और प्रशासन प्रभावी कार्य नहीं कर रहे ।
झुंझुनूं में दलित युवक की हत्या और महिला–बच्चियों के ऊपर अत्याचार की रिपोर्ट आई है ।
गहमा-गहमी का यह मामला अब राजनीतिक रुख भी ले चुका है; टिका राम जूली जैसे विपक्षी नेता ने राज्य को “क्राइम कैपिटल” कहा ।
इन घटनाओं से साफ़ पता चलता है कि सुरक्षा संसाधन और सामूहिक कल्याण योजनाओं का सही उपयोग नहीं हुआ है।
🧾 4. भर्ती परीक्षा में पेपर लीक और भ्रष्टाचार
सरकारी भर्ती परीक्षा (विशेषकर SI जैसे माध्यमिक स्तर की भर्ती) में पेपर लीक की लगातार घटनाएं चिंताजनक हैं:
राहुल साहा या हनुमान बेनीवाल सहित कई नेता पेपर लीक की जाँच के लिए सरकार को सख्त कदम उठाने की मांग कर रहे हैं ।
सुनवाई प्रक्रिया धीमी रही – काफी पूर्व सूचना दी गई थी लेकिन अभियुक्त पकड़े नहीं गए और गोरखधंधे की बातें सार्वजनिक हुईं ।
RPSC के स्कैंडल ने नियुक्तियाँ प्रभावित कीं, साथ ही फर्जी डॉक्टरों की रजिस्ट्रेशन और धोखाधड़ी के आरोप सामने आए ।
और, निजी स्कूलों या मेडिकल रजिस्ट्रेशन में भ्रष्ट प्रथाएँ विधायकों के भ्रष्ट आचरण का संकेत देती हैं ।
ये सभी घटनाएं सार्वजनिक विश्वास को प्रभावित करने वाली हैं तथा प्रशासनिक जवाबदेही पर प्रश्न खड़े करती हैं।
⚖️ 5. आरक्षण, निजी भंड़ाली और संवैधानिक दबाव
गुजरात और ओबीसी समुदायों के प्रति आरक्षण को लेकर गुर्जर व अन्य पिछड़ा समुदाय आंदोलनरत हैं – सरकार की अस्थिरता और बातचीत में लाचार स्थिति स्पष्ट है ।
आरक्षण मसले संवेदनशील होते हैं एवं सामाजिक असंतुलन पैदा कर सकते हैं – यदि संवैधानिक सुधार समय में न हों तो संघर्ष बढ़ेगा।
💸 6. भूमि, माफिया और VIP कल्चर
भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार और अवैध संपत्ति अर्जित करने के आरोप भी लगे हुए हैं:
बजरी/ग्रैवेल माफिया से कथित तौर पर राजनीतिक समर्थन लेने का आरोप है – गहना विवादों का विषय बन चुका है ।
VIP संस्कृति की आलोचना भी सोशल मीडिया और स्थानीय स्तर पर हो रही है – वर्दी अधिकारियों को परेशान करना आम बात बन गई है ।
पर्यटन या बड़े इवेंट्स जैसे IIFA पर भारी खर्च किया जा रहा है – वहीं मूल बुनियादी ढाँचों की देखरेख पर सवाल उठ रहा है ।
इसका मतलब यह हुआ कि राज्य निधियों का आधा हिस्सा आबादी के विकास और मूलभूत सुविधाओं की जगह सामाजिक–भ्रष्टाचार गतिविधियों में खर्च हो रहा है।
👷♂️ 7. विधायकीय झगड़े और बोरोक्रेसी का प्रभुत्व
भाजपा सरकार में आंतरिक असंतुलता साफ़ दिख रही है:
मंत्रियों और अफसरों के बीच टकराव बढ़ता जा रहा है; अधिकारी सरकार चला रहे हैं, CM की भूमिका विवादित साबित हो रही है ।
वित्तीय विभाग भी कई योजनाओं को रोकने की वजह बना – विकास कार्य टाल दिए गए और “Rajasthan Rising” योजना भी एक दिखावा बन कर रह गई ।
✍️ निष्कर्ष
राजस्थान में भाजपा सरकार के कार्यकाल में अब तक कई बड़े—बड़े वादों की विफलता, कानून–व्यवस्था की बिगाड़ी, भ्रष्टाचार, सामाजिक आंदोलनों की अनदेखी और सरकारी खर्च का अनुचित तरीके से प्रवाह जैसे गंभीर आरोप सामने आए हैं। ऐसी स्थिति में जनता का विश्वास हिल चुका है, और विपक्ष तथा सामाजिक समूह लगातार आवाज़ उठा रहे हैं।
अगला कदम सरकार को यह उठाना चाहिए कि:
1. बिजली, पानी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र में सटीक आंकड़ों और योजनाओं के साथ प्रदर्शन करे।
2. भर्ती परीक्षा भ्रष्टाचार के मामले में स्पष्टीकरण दे, जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई करे।
3. आरक्षण-पेपरलूक जैसी संवेदनशील मुद्दों पर संवाद, समझौता और संवैधानिक प्रक्रिया तेजी से लागू करे।
4. माफिया-भर्तियों/राशियों की जांच करे, VIP संसाधनों का उपयोग न्यूनतम व आवश्यक गतिविधियों पर सीमित रखे।
5. मंत्री और अफ़सरों के बीच तालमेल बनाये, प्रशासनिक कार्यकुशलता व जवाबदेही बढ़ाए।